न तेऽहमभिजानामि क्रोधमात्मनि संश्रितम्।
देवि केनाभिशप्ताऽसि केन वाऽसि विमानिता।।2.10.28।।
यदिदं मम दुःखाय शेषे कल्याणि पांसुषु।
देवि केनाभिशप्ताऽसि केन वाऽसि विमानिता।।2.10.28।।
यदिदं मम दुःखाय शेषे कल्याणि पांसुषु।
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