इमौ कुमारौ भद्रं ते देवतुल्यपराक्रमौ।
गजसिंहगती वीरौ शार्दूलवृषभोपमौ।।1.48.2।।
पद्मपत्रविशालाक्षौ खड्गतूणी धनुर्धरौ।
अश्विनाविव रूपेण समुपस्थितयौवनौ।।1.48.3।।
यदृच्छयैव गां प्राप्तौ देवलोकादिवामरौ।
कथं पद्भ्यामिह प्राप्तौ किमर्थं कस्य वा मुने।।1.48.4।।
गजसिंहगती वीरौ शार्दूलवृषभोपमौ।।1.48.2।।
पद्मपत्रविशालाक्षौ खड्गतूणी धनुर्धरौ।
अश्विनाविव रूपेण समुपस्थितयौवनौ।।1.48.3।।
यदृच्छयैव गां प्राप्तौ देवलोकादिवामरौ।
कथं पद्भ्यामिह प्राप्तौ किमर्थं कस्य वा मुने।।1.48.4।।