दशक्रोश इतस्तात गिरिर्यत्रनिवत्स्यसि।
महर्षिसेवितः पुण्यः सर्वतः सुखदर्शनः।।2.54.28।।
गोलाङ्गूलानुचरितो वानरर्क्षनिषेवितः।
चित्रकूट इति ख्यातो गन्धमादनसन्निभः।।2.54.29।।
महर्षिसेवितः पुण्यः सर्वतः सुखदर्शनः।।2.54.28।।
गोलाङ्गूलानुचरितो वानरर्क्षनिषेवितः।
चित्रकूट इति ख्यातो गन्धमादनसन्निभः।।2.54.29।।